Kahi Pe Nigahe Kahi Pe Nishana 1

Posted Jan 24th, 2011 by Sunia Sharma in Audio, Blog, Main
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मैं गर्मी की छुट्टियों में रतलाम आ गई थी अपने पापा के पास। घर में छुट्टियों में बहुत पाबन्दी रहती थी ना। पापा तो ऑफ़िस चले जाते थे सो आराम से घर पर आराम करती रहती थी। घर में अकेले रहने में बड़ा आनन्द आता है। एक तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है, दूसरे यह कि आपको कुछ भी करने से कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता है। बिस्तर पर लेटे लेटे एक से एक मनभावन ख्याल आते रहते हैं। मन दूर कहीं सपनों में खो जाता है … कई ऐसे लड़कों की तस्वीरें मन में उभर आती हैं जिनके साथ मैं वासना का खेल अन्तरंग अवस्था में खेला करती थी। मुझे लगता था कि अब भी मेरे साथ वो मुझसे खेल रहे हैं, मेरी नर्म-नर्म छातियों में अपना मुख लगा कर मेर दूध पीने की कोशिश कर रहे हैं, मेरे गुप्तांगों से खेल रहे हैं। इसी ताने-बाने में उलझ कर मैं अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा लेती हूँ और अपनी नर्म और गर्म हो चुकी फ़ुद्दी को सहलाने लगती हूँ। शेविंग के कारण मेरी झांट के बाल भी अब कड़े और कांटो की तरह निकल आते हैं, पर ये हाथ से सहलाने पर बहुत गुदगुदी करते हैं। जितना भी मैं अधिक सहलाती, मेरी उत्तेजना और भी बढ़ती जाती, मेरी चूत गीली होने लगती थी, चिकनाई उभर आती। उसी चिकनाई का सहारा लेकर मैं अपनी गाण्ड का फ़ूल भी चिकना कर के उसे धीरे धीरे रगड़ती।..

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